Friday, June 28, 2024

सावन

ये बरसता बादल तेरी यादों कि नमी छोड़ जाता है, 

मिटटी का यु गिला होना, हमारी प्यास जगा जाता है | 

उस पेड़ की हरी पतियों पर गिरी वो बारिश की बूंदे, 

चिड़ियों का चहकना, लहराती हुई तक़्दीरे | 

निकल पड़ते है रोज ढूंढ़ने उस साये को,

जो हमारे ख्वाबों में तो रहता है,

पर नहीं दिखाई देता इस जमाने को | 

ना जाने और कितनी ठोकरे खानी है हमे तालाश में उसकी,

कितने गम के प्याले पीने है याद में उसकी | 

ये बारिश का मौसम इस तरह क्यों आता है, 

उससे मिलने कि चाहत को आग लगा जाता है |  

ये बहती हुई ठंडी हवाएँ हमे अकेले होने का एहसास करा जाती है,  

कभी न बूझने वाली प्यास को जगा जाती है | 

खुशबू भी इस सावन की हमारे सपनो को हवा जाती है,  

सो पाए कभी बाहों में उसकी ये अरमान दे जाती है | 

खिलता है जब सूरज इस घटा के बाद, 

तो सवेरा हमारा भी हो जाता है |  

उठ जाते है सपने अंगड़ाई लेकर, 

आँखों में वीरानपन छा जाता है | 

फिर बरसेगा वो बादल, फिर रात हमारी होगी, 

खिल उठेंगे सपने, फिर आरज़ू अधूरी होगी | 

तू एक खूबसूरत सा लम्हा है जिसे हम जीते है, 

रोकना तो बहोत चाहा पर वक़्त के काटे कहाँ रुकते है | 

तमन्ना बस इतनी सी है कि तू हमे मिल जाए,

फिर ये सावन चाहे हमे कितना भी तड़पाये | 


                            - प्रेरणा राठी 

उसके बटुए में, और मेरी किताबों में, आज भी तस्वीर किसी और की मिलती हैं, कहने को तो हम जीवन साथी है, पर इश्क़ में तक़दीरें सबकी कहाँ बनती हैं | ...