ये बरसता बादल तेरी यादों कि नमी छोड़ जाता है,
मिटटी का यु गिला होना, हमारी प्यास जगा जाता है |
उस पेड़ की हरी पतियों पर गिरी वो बारिश की बूंदे,
चिड़ियों का चहकना, लहराती हुई तक़्दीरे |
निकल पड़ते है रोज ढूंढ़ने उस साये को,
जो हमारे ख्वाबों में तो रहता है,
पर नहीं दिखाई देता इस जमाने को |
ना जाने और कितनी ठोकरे खानी है हमे तालाश में उसकी,
कितने गम के प्याले पीने है याद में उसकी |
ये बारिश का मौसम इस तरह क्यों आता है,
उससे मिलने कि चाहत को आग लगा जाता है |
ये बहती हुई ठंडी हवाएँ हमे अकेले होने का एहसास करा जाती है,
कभी न बूझने वाली प्यास को जगा जाती है |
खुशबू भी इस सावन की हमारे सपनो को हवा जाती है,
सो पाए कभी बाहों में उसकी ये अरमान दे जाती है |
खिलता है जब सूरज इस घटा के बाद,
तो सवेरा हमारा भी हो जाता है |
उठ जाते है सपने अंगड़ाई लेकर,
आँखों में वीरानपन छा जाता है |
फिर बरसेगा वो बादल, फिर रात हमारी होगी,
खिल उठेंगे सपने, फिर आरज़ू अधूरी होगी |
तू एक खूबसूरत सा लम्हा है जिसे हम जीते है,
रोकना तो बहोत चाहा पर वक़्त के काटे कहाँ रुकते है |
तमन्ना बस इतनी सी है कि तू हमे मिल जाए,
फिर ये सावन चाहे हमे कितना भी तड़पाये |
- प्रेरणा राठी