Sunday, August 30, 2020

ज़िन्दगी

वजूद बुलबुले सा
ज़िन्दगी पहाड़ सी
मिली ऐसे, जैसे
कोई लताड़ सी।
कभी जो टूटी लगी कांच सी
कभी फुदकती
कभी चहकती
कभी रेंगती सांप सी।
कितने रंग
कितनी जंग
कभी भोगते
कभी भुगतते
कभी उखड़ती सांस सी।
नरमी से
सख़्ती से 
कभी रीझती
कभी सालती
कभी टीसती फांस सी
है जिंदगी भी प्यास सी।
                      
                  - आशीष गोरयान

Friday, August 28, 2020

महफ़िलें

लोगों की इस दुनिया में, महफ़िलें तो हर रोज जमती हैं, 
अकेले रह जाते हैं हम, दुनिया देख कर हंसती है। 
कल तक जो हमारे साथ थे, आज वो किसी और की महफ़िल का सितारा है, 
अब हमारा साथ, कहाँ किसी को गवारा है। 
इंसान के रंगों के आगे, प्रकृति के रंग भी फिके पड जाते हैं, 
यहाँ मौसम से पहले इंसान बदल जाते हैं। 
आज यहाँ, तो कल वहाँ, जमेगी लोगों की महफ़िल, 
पर साथ निभाएँ जो जिंदगी भर, कहाँ हैं ऐसा साहिल। 
हम तो इन महफ़िलों से अब दूर ही रहते हैं, 
क्योंकि इन महफ़िलों में अक्सर, बस दिल ही टूटते हैं। 
कभी किसी टूटे हुएँ दिल के साथ महफ़िल जमा कर देखो जनाब,
दुनिया का कोई भी रंग, न आएँगा फिर तुमको रास। 

                            - प्रेरणा राठी

Monday, August 24, 2020

खामोशीया

हम कुछ कहते नहीं, इसका मतलब ये नहीं कि हमे दर्द नहीं होता, 
हम कुछ जताते नहीं, इसका मतलब ये नहीं कि हमे कुछ महसूस नहीं होता। 
दिल शोरगुल हैं, मगर ज़बान खामोश है, 
समझ न पाओगे तुम, इसे शिकायत है। 
                और वैसे भी -
अपना हाल-ऐ-दिल किस-किस को सुनाएँ हम,
अपनी दासता-ऐ-जिदंगी किस-किस को समझाएँ हम।
समझना हैं तो हमारी खामोशी को ही समझ जाओ, 
कुछ कह न पाएँगे हम, और न ही तुम हमें समझाओ। 
पतझड़ के टूटे पत्तों की तरह, तुमने हमें बेकार समझ लिया, 
लेता है एक नया जीवन जन्म, मिट्टी में दो अगर इन्हें मिला। 
छोड़ सा दिया है हमारे दिल ने तुमसे उम्मीद लगाना, 
रोज अपने दुखडे सुनाने का तुम ढूंढ ही लेते हो बहाना। 
हमारे दिल का क्या है जनाब, 
कल भी अकेला था और आज भी अकेला है। 
दो पल की है जिंदगानी, और चार दिन का मेला है। 
फिर तो ये शरीर भी मिट्टी है, और ये रूह भी हवा है। 
किसने देखा है आगे, जिंदगी का यही खेला है। 

                           - प्रेरणा राठी

Friday, August 21, 2020

फकीर

फकीर हू, 
फकीर ही सही। 
दुनिया के इन झूठे रिश्तो की,
मुझे कोई जरूरत नहीं। 
अक्सर लग जाती है, 
अमीरो के घरो में आग।
और उसे बुझाने, 
कोई आता ही नहीं। 

                    - प्रेरणा राठी

Tuesday, August 18, 2020

दिल बेचारा

इस दिल में टूट कर बिखर जाने की खवाईश हैं, 
साथ मिले इसे किसी का, ये भी नुमाइश हैं 
पर डर सा लगता हैं इसे फना हो जाने में, 
कहीं रेत बनकर बह न जाए हवाओ कि लहरों में। 
खो गया तो कहाँ से हम इसे ढूंढ कर लाएगे,
वक्त के दरिया में जिंदगी की कश्ती कैसे पार लगाएगें।
अपनो ने तो इसे पराया ही कर दिया, 
दरद जुदाई का ईनाम में दिया। 
अब तो इसे किसी पर भी एतबार न रहा, 
अपने जख़्म लेकर बे-चारा हैं चला जा रहा। 
न जाने ये राहे इसे कहाँ लेकर जाएंगी,
न जाने ये साँसे इसे कब छोड़ कर जाएंगी।
ऐ खुदा, अब तो तू ही कर इस पर रहम, 
टूट कर बिखरे जो कभी, तो बन जाए एक नया महल। 

                           - प्रेरणा राठी

Saturday, August 15, 2020

हिंदुस्तान हमारा हैं।

ये जो आसमान में लहरा रहा हैं, 
वो तिरंगा हमारा हैं। 
जो कीचड़ में भी खिल जाए, 
वो कमल हमारा हैं।
बरसते बादलों के बीच, 
जो अपने पंख फैला कर नाच रहा हैं, 
वो मोर हमारा हैं। 
जिसकी दहाड से ही, दुश्मन कांप उठे, 
वो शेर हमारा हैं। 
अपनी मिट्टी के एक कण के लिए भी, 
जो अपना खून बहा दे, 
वो जवान हमारा हैं। 
लगाई मंगल पर मोहर जिसने सबसे पहले, 
वो मंगलयान हमारा हैं। 
जमाने की लाख कोशिशो के बावजूद, 
जो आगे बढ़ रहा हैं, 
वो हिंदुस्तान हमारा हैं। 

                             - प्रेरणा राठी

Thursday, August 13, 2020

A tribute to Sushant Singh Rajput

घर से तो निकला था लेकर सपने हजार, 

बनाना था चाँद पर घर, करना था सबके दिलों पे राज। 

जो भी किया दिल से किया, 

जिंदगी का हर लम्हा मैंने खुल कर जिया। 

शुरूआत छोटी थी पर इरादे बडे़  थे, 

कामयाबी तो मिलनी ही थी, मेरे हौसले जो बुलंद थे। 

कुछ लोगो का साथ मिला, कुछ लोगों ने कर लिया किनारा, 

फिर भी चलता गया मैं, भले ही था गमो का मारा। 

दुनिया वालो ने मेरे खिलाफ, कर ली बुलंद अपनी आवाज, 

मचा था मेरे दिल मे भी शोर, मगर खामोश थी जबान। 

कहता रहा अपने दिल से, कि तू चल तुझे कोई हरा नहीं सकता, 

बस चलता जा तू, कि तुझे कोई मिटा नहीं सकता।

मगर  नफरत के  आगे मोहब्बत फिकी पड़ गई, 

मेरी जिंदगी की कहानी बरबादी की तरफ मुड गई। 

सम्भालना चाहता था खुद को उस आखिरी लम्हे तक, 

चाहता था कि खड़ा हो जाऊँ फिर एक बार अपने पैरों पर। 

मगर अंधेरा इतना घना था कि उम्मीद की कोई रोशनी नजर ही न आई, 

चारो तरफ ढूंढा मगर, नसीब मे बस तनहाई ही आई। 

चहरा तो सबने देखा मेरा, मगर कोई दिल नहीं देख पाया, 

बाते तो सबने की मुझसे, मगर कोई मेरी खामोशी नहीं सुन पाया। 

तन्हाईयों की गहराइयों में डूबता चला गया दिल मेरा,  कि उसे कोई ढूंढ ही नहीं पाया। 

पल -पल तड़प रहा था दिल, 

रूह भी मर रही थी मेरी तिल -तिल। 

दम घुट रहा था मेरा उस अंधेरे मे, 

इसलिएँ जिंदगी को ही अलविदा कह दिया मैने चार दिवारो के पहरे मे। 

कायर न समझना मुझे, बेबस हो गया था मैं, 

इस दुनिया से लड़ते -लड़ते खुद ही हार गया था मैं। 

जानता हूँ जो मैंने किया, वो सही नहीं, 

मगर मेरे जैसे लोगों की इस दुनिया में कोई कदर नहीं। 

जा रहा हूँ अब मैं ये दुनिया छोड़ कर, 

रिश्ते नाते सब इस दुनिया से तोड़ कर। 

मगर याद रखना, फिर लौटू़ंगा उस खुदा के घर से लेकर एक नया जीवन, 

और तब न रोक पाएगा कोई मुझे लहराने से अपनी जीत का परचम।


                     - प्रेरणा राठी

क्या खोज रहा हूँ

दर्द-ए-दिल की दवा नहीं, जबाँ खोज रहा हूँ, सही गलत तू देख लेना, तालीम की राह खोज रहा हूँ|  शायर हू, शायरी नहीं आशिक़ी खोज रहा हूँ, बरसांते तो ...