वजूद बुलबुले सा
ज़िन्दगी पहाड़ सी
मिली ऐसे, जैसे
कोई लताड़ सी।
कभी जो टूटी लगी कांच सी
कभी फुदकती
कभी चहकती
कभी रेंगती सांप सी।
कितने रंग
कितनी जंग
कभी भोगते
कभी भुगतते
कभी उखड़ती सांस सी।
नरमी से
सख़्ती से
कभी रीझती
कभी सालती
कभी टीसती फांस सी
है जिंदगी भी प्यास सी।
- आशीष गोरयान
Phenomenal words
ReplyDeleteBeautifully written❤
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteDeclare this officially as the definition of life....❤️❤️
ReplyDeleteAbsolutely on point
ReplyDeleteVery nice 😍🌈 loved it
ReplyDeleteGood bro keep it.
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