दिल तो टूट ही चुका है, बस साँसो का बिखरना बाकी है|
रूह तो जुदा हो ही चुकी है, बस इस जिस्म का फ़ना होना बाकी है|
खुशियाँ तो बहुत बाँट ली हमने, अब बस गुनाह कमाना बाकी है|
उस खुदा को बहुत मान लिया, अब बेख़ुदाई करना बाकी है|
वफा तो कर ली हमने, अब बेवफाई करना बाकी है|
बहा लिए आँखों से आँसू भी हमने, अंगारों का बरसना बाकी है|
मोहब्बत तो कर ही लि हमने, अब नफरत का होना बाकी है|
- प्रेरणा राठी
Quite an intense poem, evokes deep, painful but beautiful plethora of emotions!
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