Sunday, March 7, 2021

बाकी है|

दिल तो टूट ही चुका है, बस साँसो का बिखरना बाकी है| 

रूह तो जुदा हो ही चुकी है, बस इस जिस्म का फ़ना होना बाकी है| 

खुशियाँ तो बहुत बाँट ली हमने, अब बस गुनाह कमाना बाकी है| 

उस खुदा को बहुत मान लिया, अब बेख़ुदाई करना बाकी है| 

वफा तो कर ली हमने, अब बेवफाई करना बाकी है| 

बहा लिए आँखों से आँसू भी हमने, अंगारों का बरसना बाकी है| 

मोहब्बत तो कर ही लि हमने, अब नफरत का होना बाकी है| 


                                     - प्रेरणा राठी 

1 comment:

  1. Quite an intense poem, evokes deep, painful but beautiful plethora of emotions!

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