Friday, June 16, 2023

आशियाना

जमीनें तो दि तुने, 
पर रहने को घर न दिया। 
निकला तो आशियाना बनाने था, 
पर ईंटों का भाव न पता किया। 
तेरी इस खूबसूरत दुनिया में, 
अब पैर डगमगाने लगे हैं,
दूसरों का आशियाना देख, 
निराशा के बादल छाने लगे हैं। 
पूछती है मुझसे अब ये आँखें मेरी, 
कब होंगे वो ख्वाब पूरे, 
जो देखे हमने साथ मिलकर, 
कही छोड़ तो न जाएँगे हमें, 
राते इतनी बेचैन देकर। 
लाखँ कोशिशें कि है हमने, 
सपनो में अपने जान भरने कि, 
चंद साँसो कि जरूरत है हमें, 
ये कभी किसी ने देखा हि नहीं। 
चाँद सितारों को पाने कि आरज़ू नहीं हमारी, 
बस उनकी छाँव में रहना चाहते  हैं।
करोडों कि भीड़ से अलग होने कि इच्छा नहीं हमारी, 
बस उनका साथ पाना चाहते हैं। 
चलो कुछ और कदम चलते है, 
डगमगाते कदमों से हि सही, 
शुरू किया जो, वो सफर पूरा करते है। 
क्या पता हमें हमारी मंजिल मिल हि जाएँ, 
न मिली, तो हमारा सफर हि खूबसूरत बन जाएँ। 

                         - प्रेरणा राठी 


2 comments:

  1. Really nice 😊❣️

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  2. प्रयास अच्छा है, लेकिन आपको कुछ क्लासिकल कवियों को पढ़ना चाहिए जैसे धूमिल, मुक्तिबोध, अमृता प्रीतम, पाश, दुष्यंत कुमार आदि को तभी वास्तविक कविता की समझ पैदा होगी..

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