जब मौत को गले लगाया,
तब दुनिया का एक और सच सामने आया।
सुना था, मरने के बाद सारी परेशानियाँ खत्म हो जाती हैं,
सुकून होता है और रुह को जन्नत मिल जाती हैं।
मैं भी चढ़ा था उस खुदा के घर की सीढ़ियाँ,
पर न आया वो बाहर, न खोली उसने खिडकियाँ।
फिर कही से एक आवाज़ आई-
तु तो मर कर भी नहीं मर पाया,
इस दुनिया ने तुझ पर मुकदमा हैं चलाया।
जा पहले उन से अर्जी लेकर आ,
इस दुनिया से मुक्ती लेकर आ।
तुझे अपने घर में पनाह नहीं देनी तो मत दे, नाटक क्यों करता है,
जिन्होंने मेरी मौत का षड़यंत्र रचा, उन्हीं से भीख माँगने को कहता है।
क्या फर्क पडता हैं, मैने खुदखुशी कि या उन्होनें मुझे मार डाला,
दोनों ही तस्वीरो में, कीचड़ मुझ पर ही तो उछाला।
मेरे शरीर को कभी नहीं अपनाया,
और आज मेरी रूह पर भी है दाग लगाया।
और तु कहता है कि इन फर्जी लोगों कि अर्जी लेकर आऊ,
मुकदमा जो चलाया इन्होनें मुझ पर, उसमें बेकसूर साबित होकर आऊ।
ओ मेरे खुदा, तु कितना भोला है, जाकर नीचे तो देख,
नरक से भी बत्तर सर्वग, इंसान ने खोला हैं।
पर तुझसे क्या शिकायत करू, तु तो अपना काम कर रहा है,
जन्नत मिले उसी को, जो बेगुनाह है।
बर्बाद तो मुझे तेरी बनाई दुनिया ने कर दिया,
छीन ली मेरे पैरों से जमींन, अब आसमान भी ले लिया।
पर अगर तु चहाता हैं, तो थोड़ा और भटक लूगाँ, थोड़ा और तड़प लूगाँ,
जब तक बेगुनाह साबित नहीं हो जाता, बर्बादी का दर्द थोड़ा और सह लूगाँ।
पर तुझसे एक वादा मैं लेना चहाता हुँ,
होगा इस मुकदमे का अंत, बस इतना यकीन दिला दे तू।
क्योंकि मुझे इस दुनिया पर पूरा भरोसा है, ये मुझे कभी रिहा नहीं होने देगें,
मेरी मौत को धंधा बनाकर हर रोज बाजार में बेंचेगे।
- प्रेरणा राठी
So alluring
ReplyDeleteWse aaj kal ki drishti me achi kavita hai.
ReplyDeleteNice
Brilliant
ReplyDeleteDeep and lovely poem!
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